सुप्रीम कोर्ट ने 2006 मुंबई ब्लास्ट केस में बॉम्बे HC के फैसले पर रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया गया था। इस धमाके में 189 लोगों की मौत हुई थी। जस्टिस एमएम सुंदरेश और एन कोटीश्वर सिंह की पीठ ने सभी आरोपियों को नोटिस जारी करके महाराष्ट्र सरकार की अपील पर उनका जवाब मांगा है। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह स्टे ऑर्डर जेल से आरोपियों की रिहाई को प्रभावित नहीं करेगा।
बॉम्बे HC ने क्यों बरी किया था आरोपियों को?
22 जुलाई को बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी करते हुए कहा था कि “अभियोजन पक्ष मामला साबित करने में पूरी तरह विफल रहा” और “यह मानना मुश्किल है कि आरोपियों ने यह अपराध किया”। जस्टिस अनिल किलोर और श्याम चंदक की पीठ ने कहा कि सबूत निर्णायक नहीं थे। विशेष एमसीओसीए कोर्ट ने 2015 में पांच आरोपियों को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसे हाई कोर्ट ने पलट दिया।
महाराष्ट्र ATS ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
हाई कोर्ट के फैसले के बाद, महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। ATS का दावा है कि आरोपी स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के सदस्य थे और उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के पाकिस्तानी आतंकियों के साथ मिलकर साजिश रची थी।
11 जुलाई 2006 का वह खौफनाक मंजर
11 जुलाई 2006 की शाम, मुंबई लोकल ट्रेन के सात अलग-अलग स्थानों पर मात्र 11 मिनट के अंदर धमाके हुए। ये बम चर्चगेट से चलने वाली ट्रेनों के फर्स्ट-क्लास डिब्बों में रखे गए थे और माटुंगा, माहिम, बांद्रा, खार, जोगेश्वरी, भायंदर और बोरीवली स्टेशनों के पास फटे। इस हमले में 189 लोगों की मौत हुई और 800 से ज्यादा घायल हुए। 2015 में ट्रायल कोर्ट ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था, लेकिन अब यह मामला एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में चर्चा में है।