
नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को झारखंड हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह एक एकल अभिभावक महिला न्यायिक अधिकारी की बच्चे की देखभाल के लिए छुट्टी (चाइल्ड केयर लीव) की याचिका पर पुनर्विचार करे। इस याचिका में उनके छुट्टी के अनुरोध को ठुकराए जाने को चुनौती दी गई है।
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट को यह याचिका पिछले फैसले के प्रभाव में आए बिना दोबारा देखनी चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट के वकील को आदेश दिया कि वह तीन दिन के भीतर इस मामले में जरूरी निर्देश प्राप्त करें, क्योंकि अगली सुनवाई अगले हफ्ते तय की गई है।
हाईकोर्ट को यह सुझाव दिया गया कि बच्चे की देखभाल के लिए छुट्टी देने के अनुरोध पर पुनर्विचार किया जाए। बेंच ने हाईकोर्ट के वकील से यह भी कहा कि यह उचित होगा कि हाईकोर्ट खुद ही इस मुद्दे पर फिर से विचार करे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आगे के मामलों के लिए उदाहरण बन सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 29 मई को झारखंड सरकार और हाईकोर्ट रजिस्ट्री से जवाब मांगा था। यह जवाब एक महिला न्यायिक अधिकारी की याचिका पर मांगा गया था, जिसमें उन्होंने छह महीने की चाइल्ड केयर लीव न दिए जाने को चुनौती दी थी। महिला अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) हैं और अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग से आती हैं। उन्होंने जून से दिसंबर तक के लिए छुट्टी मांगी थी, ताकि वह अपने बच्चे की परीक्षा की तैयारी में उसकी देखभाल कर सकें।
चीफ जस्टिस (सीजेआई) की अध्यक्षता वाली बेंच ने पहले पूछा था कि उन्होंने यह याचिका पहले झारखंड हाईकोर्ट में क्यों नहीं दाखिल की। उनके वकील ने बताया कि हाईकोर्ट की ग्रीष्मकालीन छुट्टियों की वजह से याचिका पर तत्काल सुनवाई नहीं हो पाती, इसीलिए सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया।
वकील ने कहा, वह समाज के सबसे निचले तबके से आने वाली एक एकल अभिभावक (सिंगल पैरेंट) हैं। उन्होंने यह भी बताया कि न्यायिक सेवा में उनका रिकॉर्ड प्रभावशाली रहा है और ढाई साल में उन्होंने 4,000 से ज्यादा मामलों का निपटारा किया है। याचिका में कहा गया है कि चाइल्ड केयर लीव के लिए नियम के अनुसार, न्यायिक अधिकारी को पूरी सेवा अवधि में कुल 730 दिनों की छुट्टी का अधिकार है। लेकिन उन्होंने केवल छह महीने की छुट्टी ही मांगी थी।