
नई दिल्ली: बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर बिहार ही नहीं पूरे देश में सियासी पारा चरम पर है। जहां चुनाव आयोग अभियान चला कर जोर-शोर से इसे अंजाम दे रहा है, वहीं विभिन्न राजनैतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं। इस बीच, चुनाव आयोग ने अपने अधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 की तस्वीर साझा की है। ऐसा करके चुनाव आयोग ने बिना कुछ कहे यह साफ कर दिया है कि वह सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के लिए प्रतिबद्ध है और ऐसा करके वह केवल अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा है।
क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 326
दरअसल भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 के मुताबिक यह वयस्क मताधिकार की गारंटी देता है. इसके अनुसार भारत का हर वह नागरिक जो 18 साल या उससे ज्यादा उम्र का है। सामान्य रुप से किसी निर्वाचन क्षेत्र में रहता है। वह मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने का हकदार है। इसके केवल मानसिक रुप से विक्षिप्त, अपराधी, भ्रष्टाचार में लिप्त और अवैध काम करने वालों को इसके अयोग्य माना गया है। यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि सभी पात्र नागरिकों को निष्पक्ष और समान रुप से मतदान का अधिकार मिले।
बिना कुछ कहे विपक्ष को दिया बड़ा संकेत
आयोग ने तस्वीर साझा कर विपक्ष को बिना कुछ कहे बड़ा संदेश दे दिया है। इसके जरिये आयोग का कहना है कि वह एक संवैधानिक स्वायत्त संस्था है। भारत का संविधान उसके लिए सर्वोच्च है। उसे ही आधार मानकर पर वह बिहार राज्य में एसआईआर की कवायद कर रहा है। इसके अलावा आयोग ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इस पोस्ट के माध्यम से उन आलोचनाओं का जवाब देने की कोशिश की है, जिसमें विपक्ष उसे लगातार घेर रहा है। इसे लेकर आयोग ने साफ किया है कि वह केवल योग्य नागरिकों को मतदान करने के लिए मतदाता पहचान पत्र बनाता है। उसका लक्ष्य योग्य पात्र को मतदाता सूची में शामिल करना है। जो कि पूरी तरह से एक संवैधानिक और पारदर्शी प्रक्रिया से संचालित है।
विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण को लेकर उठ रहे कई सवाल
विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण को लेकर विरोध के साथ ही विपक्ष कई सवाल खड़े कर रहा है। 22 साल पहले यानी 2003 में इस प्रक्रिया के दौरान दो साल लगे थे। एक महीने में विशेष गहन पुनरीक्षण का रिकॉर्ड जुटाकर सत्यापन करना और उसके बाद पूरे एक महीने दावा-आपत्तियों को करना है। 22 साल पहले सब कुछ कंप्यूटराइज्ड नहीं था। मोबाइल या टैब जैसे डाटा फीड उपकरण नहीं थे। ऑनलाइन फॉर्म भरने या एक व्यक्ति के डाटा को लेकर फॉर्म प्रिंट करने का विकल्प सुलभ नहीं था। इसके अलावा तकनीक-सक्षम मानव संसाधन भी नहीं थे। इसलिए अब यह सवाल इच्छाशक्ति और समर्पण पर ही निर्भर करता है। वहीं, विपक्ष का आरोप है कि यह समय राज्य में एसआईआर कराने का नहीं है, क्योंकि बिहार में मानसून और सूखा तो सबसे बड़ी समस्याओं का मौसम है। ऐसे में प्रक्रिया शुरु करना व्यावहारिक नहीं है। इस वजह से कई योग्य मतदाता छूट जाएंगे। बिना पढ़े लिखे लोगों का मतदाता पहचान पत्र छीन जाएगा।