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सरकार ने SO₂ उत्सर्जन मानदंडों में बदलाव का किया बचाव, कहा- हमारी मंशा गलत तरीके से पेश की गई

नई दिल्ली:  सरकार ने सोमवार को तापीय बिजली संयंत्रों (थर्मल पावर प्लांट) के लिए सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) उत्सर्जन मानदंडों को आसान बनाने के अपने हालिया फैसले का बचाव किया। सरकार ने कहा कि यह फैसला विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन और हितधारकों के सुझावों के आधार पर लिया गया था। मीडिया रिपोर्ट में इस फैसले को ‘कानून में ढील’ बताया गया है, लेकिन सरकार का कहना है कि इन रिपोर्ट में इस फैसले की असली वजह को गलत तरीके से पेश किया गया है।

11 जुलाई को जो नई अधिसूचना जारी हुई थी, उसमें समयसीमा बढ़ा दी गई और कई कोयला बिजली घरों को फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (एफजीडी) इकाई लगाने से छूट दी गई। इसके कुछ दिन बाद सरकार ने बयान जारी कर कहा कि मीडिया रिपोर्ट में इस फैसले के पीछे के वैज्ञानिक कारणों और पर्यावरण नीति की मंशा को गलत तरीके से दिखाया गया है।

पर्यावरण मंत्रालय ने बताया कि देशभर के 537 थर्मल पावर प्लांट के लिए एसओ2 के संशोधित उत्सर्जन मानक हितधारकों और अनुसंधान संस्थानों के साथ व्यापक परामर्श के बाद बनाए गए हैं। ये मानदंड आईआईटी दिल्ली, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज और नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनईईआरआई) जैसे प्रमुख संस्थानों के वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर तैयार किए गए हैं। साथ ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी इनकी समीक्षा की है।

‘सी’ श्रेणी के प्लांट के लिए समयसीमा में ढील और छूट को लेकर मंत्रालय ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट में वैज्ञानिक साक्ष्य और पर्यावरण नीति की मंशा दोनों को गलत तरीके से पेश किया गया। मंत्रालय ने कहा, नियामकीय ढील के आरोप गलत हैं। हमारा निर्णय तर्क और साक्ष्यों पर आधारित है। यह वर्तमान हवा की स्थिति, प्रदूषण के तरीके और लंबे समय तक पर्यावरण को सुरक्षित रखने के विचार पर आधारित है।

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