
नई दिल्ली:कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और संचार महासचिव जयराम रमेश ने गुरुवार को कहा कि पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर मोदी सरकार का रिकॉर्ड भरोसा नहीं जगाता कि इन मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा या समाधान होगा। पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश ने बताया कि देशभर के 150 से ज्यादा सामाजिक संगठनों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपनी चिंताओं को रखा है।
कांग्रेस नेता ने सरकार पर लगाए आरोप
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जानकारी देते हुए बताया कि इन संगठनों ने पांच मुख्य मुद्दे उठाए हैं। इनमें पहला है पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का यह बयान, जिसमें उन्होंने ‘वन अधिकार अधिनियम, 2006’ को प्रमुख वन क्षेत्रों के नष्ट होने का कारण बताया है। इसके अलावा, कार्यकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार संसद और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को जंगलों पर कब्जे के बारे में कानूनी रूप से गलत आंकड़े देती रही है। उन्होंने यह भी चिंता जताई कि जून 2024 में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी द्वारा एक आदेश जारी किया गया है, जिसके तहत देशभर के टाइगर रिजर्व से करीब 65,000 परिवारों को हटाने की योजना है।
‘नियमों से जंगलों की गुणवत्ता और मात्रा पर पड़ा असर’
जयराम रमेश ने बताया कि कार्यकर्ताओं ने यह भी मुद्दा उठाया कि पिछले 10 वर्षों में जंगलों की कटाई के लिए वन अधिकार अधिनियम को गलत तरीके से जिम्मेदार ठहराया गया है। इसके अलावा, उन्होंने 2023 में संसद में पारित किए गए ‘वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980’ में संशोधन और उसके बाद बनाए गए ‘वन संरक्षण एवं संवर्धन नियम, 2023’ पर भी सवाल उठाए। इन नियमों से जंगलों की गुणवत्ता और मात्रा दोनों पर बुरा असर पड़ने की बात कही गई है।
आदिवासी और अन्य समुदायों के लिए ये जरूरी- रमेश
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘ये मुद्दे आदिवासी और जंगलों में रहने वाले समुदायों के लिए बेहद जरूरी हैं, क्योंकि उनकी आजीविका इन क्षेत्रों से जुड़ी है। साथ ही, ये देश की पारिस्थितिकीय सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।’ उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार की अब तक की कार्यशैली से यह भरोसा नहीं होता कि इन गंभीर मुद्दों पर किसी तरह की चर्चा या समाधान की कोशिश की जाएगी।